साल 2013 से पहले तक देश में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता था। यूपीए सरकार ने इस कानून में सुधार किया और कुछ अहम संशोधनों को इसमें शामिल किया। 1894 के भूमि अधिग्रहण कानून में मुआवजे के प्रावधान अत्यधिक अपर्याप्त थे और ‘यह आवश्यक हो गया था कि और अधिक मुआवजे के साथ साथ पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन पैकेज के भी प्रावधान किए जाएं। 2013 के कानून में ऐसा किया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने ग्रामीण विकास और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून में कुछ और महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। लेकिन कुछ राजनीतिक दल और संगठन राजनीतिक कारणों से इसका विरोध कर रहे हैं।
भूमि अधिग्रहण कानून में अध्यादेश लाकर किए गए बदलावों के विरोध में समाजसेवी अन्ना हजारे ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर दो दिनों का प्रदर्शन शुरू कर दिया। धरने पर बैठे अन्ना ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, ‘पीएम मोदी ने अच्छे दिनों का वादा किया था, इसलिए लोगों ने उन्हें वोट दिया। हालांकि, ऐसा हुआ नहीं। अच्छे दिन सिर्फ पूंजीपतियों के आए हैं।’
अन्ना (और सभी विरोधी दल ) के भाषण के प्रमुख बिंदु:
- भूमि अधिग्रहण बिल अलोकतांत्रिक और किसान विरोधी है।
- उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार किसानों से धोखा कैसे कर सकती है?
- सरकार उसी तरह जमीन लेने की तैयारी में है, जैसे अंग्रेज करते थे।
- अध्यादेश लाने की जरूरत क्या है, जब एक्ट 2013 में पास हो चुका है।
- बहुत कम ही किसानों को बिल की जानकारी है, जागरूकता फैलानी होगी।
कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ बहुतेरे विपक्षी दल भी इस क़ानून पर सरकार को घेरने मे लगी है और इसे किसान-विरोधी बता रही हैI ऐसे मे यह ज़रूरी हो गया है की हम इन सांसोधनों को अच्छी तरह से समझें.
मूलभूत बदलाव और इसके परिणाम:
सहमति: रक्षा, सस्ते घर और औद्योगिक कॉरिडोर के लिए प्रभावित होने वाले 80 प्रतिशत लोगों की सहमति ज़रूरी थी। बहुफसली जमीन का बिना सहमति के अधिग्रहण नहीं किया जा सकता था। सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन का सर्वे अनिवार्य था। यूपीए सरकार ने जो भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुन:स्थापन अधिनियम, 2013 बनाया था, उसमें 13 कानूनों को सोशल इंपैक्ट और कंसेंट क्लाज से बाहर रखा गया था। इनमें सबसे प्रमुख तो कोयला क्षेत्र अधिग्रहण और विकास कानून 1957 और भूमि अधिग्रहण (खदान) कानून 1885, और राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 है। इसके अलावा इटॉमिक ऊर्जा कानून 1962, इंडियन ट्रामवेज एक्ट 1886, रेलवे एक्ट 1989 जैसे कानून प्रमुख हैं।
बदलाव: नरेंद्र मोदी सरकार ने इसमें कुछ और महत्वपूर्ण विषयों के लिए भूमि अधिग्रहण को सोशल इंपैक्ट और कंसेंट क्लाज से बाहर रखे गए कानूनों की सूची में जोडा है। बहुफसली जमीन (धारा 10A) के तहत पांच उद्देश्यों राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण आधारभूत संरचना, औद्योगिक कॉरिडोर और पीपीपी समेत सार्वजनिक आधारभूत संरचनाएं के लिए बिना सहमति के अधिग्रहित की जा सकती है। इन पांचों क्षेत्रों को सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट (आसपास के इलाके में सामाजिक प्रभाव, अनिवार्य) सर्वे से भी मुक्त किया गया। सरकार इस बात पर सहमत है कि सबसे पहले सरकारी जमीन का, फिर बंजर भूमि, फिर आखिर में अनिवार्य हो तब जाकर के उपजाऊ जमीन को हाथ लगाया जाए। क्रियाएं लम्बी और जटिल होती हैं जो किसानों को अफसरशाही के चुंगल फँसाती हैं।
रक्षा: क्या देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण नही है? देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भी सरकार ने कुछ बदलाव किए। आज देश के लोंगों की गाढी कमाई विदेशों से हथियार मंगाने पर खर्च होती है। क्या हमें इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर नही होना चाहिए? क्या ये देशहित में नही है? अगर सरकार को कोई न्यूक्लियर प्लांट बैठाना होगा तो सरकार इसकी क्या सूचना पहले देशवासियों को देगी? ये सारे सवाल बहुत अनिवार्य हैं । अगर सुरक्षा के क्षेत्र में कोई आवश्कता हो तो वह जमीन किसानों से मांगनी पड़ेगी और मुझे विश्वास है कि वो किसान अपनी खुशी से देगा।
ग्रामीण बिजली एवं सिंचाई परियोजनाएं: क्या किसानों के खेतों को पानी नही मिलना चाहिए? क्या गांवों में समृद्धि नही आनी चाहिए? नरेंद्र मोदी सरकार ने सिंचाई परियोजनाओं के लिए कानून में बदलाव किए हैं। सरकार सिंचाई के लिए व्यवस्था करना चाहती है। ये बदलाव खेतों को पानी उपलब्ध कराने के लिए हैं। जब तक किसानों को पानी नही मिलेगा तब तक हम उन्हें आत्मनिर्भर नही बना पाएंगे। 2000 एकड में अगर हम एरिगेशन प्रोजेक्ट लगाते हैं तो 3 लाख हेक्टेअर खेतों को हम पानी उपलब्ध करा सकते हैं। यह कहां से किसान विरोधी है?
गरीबों के लिए घर : बड़े पैमाने पर गरीबों के लिए सस्ते घर बनाना।
औद्योगिक कारीडोर : इंडस्ट्रियल कोरीडोर प्राइवेट नहीं, पूंजीपति नहीं, सरकार बनाती हैI इंडस्ट्रियल कोरीडोर प्राइवेट नहीं है, ये सरकार बनाएगी और उस इलाके के लोगों को रोजगार देगी, जो गाँव और किसानो की भलाई के लिए हैl इंडस्ट्रियल कोरीडोर दिल्ली या फिर किसी महानगर में नही बनेगा। यह ग्रामीण इलाको से होकर गुजरेगा। इसके तहत अगर ग्रामीण इलाकों में उद्योग लगते हैं तो इसका सीधा फायदा किसानों को होगा। बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। किसानों के फसलों को उनकी फसलों का सही दाम मिलेगा। जहां कच्चा माल मिलेगा वहां उससे संबंधित उद्योग आने की ज्यादा संभावना है। क्या हमारे ग्रामीण युवाओं को रोजगार देना ठीक नही है?
मुआवज़ा: आपको मालूम है, हिंदुस्तान में 13 कानून ऐसे हैं जिसमें सबसे ज्यादा जमीन संपादित की जाती है, जैसे रेलवे, नेशनल हाईवे, खदान। पर पिछली सरकार के कानून में भू-अधिग्रहण के लिए संसद द्वारा बनाए गए 13 कानूनों को इस अधिनियम की चौथी अनुसूची में रख दिया गया है। धारा 105 में प्रावधान है कि सरकार एक अधिसूचना जारी कर कानून में मुआवजा या पुनर्वास एवं पुनस्र्थापना संबंधी ‘किसी’ प्रावधान को छूट वाले कानूनों पर लागू कर सकती है, मतलब किसानों को वही मुआवजा मिलेगा जो पिछले कानून से मिलता था। ये ग़लती थी कि नहीं?
बदलाव: NDA सरकार ने इसको ठीक किया और कहा- उसका मुआवजा भी किसान को 4 गुना तक मिलना चाहिए। सुधार किसान विरोधी है क्या?
समय-सीमा: अधिग्रहण के बाद से पांच साल में इस्तेमाल न होने पर संबंधित भूमि को किसान को वापस कर दिया जाएगा।
बदलाव: भूमि लौटाने की सीमा पांच साल से बढ़ाकर परियोजना के बनने में लगने वाले समय तक कर दी गई है। कानूनी रुकावटों के चलते हुई देरी पर यह क्लॉज़ लागू नहीं होगा। सरकार ने प्रोजेक्ट की समय-सीमा बाँध दी है और उतने सालों में अगर प्रोजेक्ट पूरा नहीं होता हैं तो जो किसान चाहेगा वही होगाI प्रोजेक्ट की समय-सीमा बांध कर सरकार ने खुद की जिम्मेवारी को फिक्स किया हैI
बदलावों को करते हुए सरकार ने मुआवजे और पुनर्वास से कोई समझौता नही किया है। यही नही, जमीन मालिक के आलावा भी उस पर निर्भर लोग मुआवजे के हकदार होंगे। पूरा मुआवजा मिलने के बाद ही जमीन से विस्थापन होगा। इन बदलावों में न्यायसंगत मुआवजे के अधिकार और पारदर्शिता पर खास जोर दिया गया है। अब मुआवजा एक निर्धारित खाते में ही जमा होगा। मुकम्मल पुनर्वास इस कानून का मूल आधार है। बिना उसके कोई भी जमीन किसी भी किसान से देश के किसी भी हिस्से में किसी भी कीमत पर नही ली जा सकेगी। इसके अलावा अब दोषी अफसरों पर अदालत में कार्यवाई हो सकेगी। इसके साथ ही किसानों को अपने जिले में ही शिकायत या अपील का अधिकार होगा।
क्या हम चाहतें हैं कि हमारे किसानों के बच्चे दिल्ली-मुंबई की झुग्गी झोपड़ियों में जिन्दगी बसर करने के लिए मजबूर हो जाएँ? ये व्यावहारिक विषय है। व्यापार के लिए नहीं है, गावं की भलाई के लिए है, किसान की, उसके बच्चों की भलाई के लिए है। आवश्यकता यह है की हमारा किसान ताकतवर कैसे बने, हमारा गाँव ताकतवर कैसे बने? गाँव की और गाँव मे रहने वाले ग्रामीण किसानों और खेतिहर मज़दूरों की सरकार से क्या अपेक्षा रहती है, और अभी तक हमारे पूर्व के सरकारों ने क्या किया है, इस बात को भली-भाँति समझने के लिए, बिहार की पिछड़ी जाती के एक ग्रामीण सांसद श्री हुकुम्देव नारायण यादव का यह भाषण सौ प्रतिशत सटीक है ।
2013 मे समर्थन क्यूँ ?
आप जानते हैं भूमि अधिग्रहण का कानून 120 साल पहले आया थाI देश आज़ाद होने के बाद भी 60-65 साल वही कानून चला। जो लोग आज किसानों के हमदर्द बन कर के आंदोलन चला रहे हैं, उन्होंने भी इसी कानून के तहत देश को चलाया, राज किया। 2013 में आनन- फानन में नया कानून लाया गया, भारतीय जनता पार्टी ने भी इसका समर्थन किया था, किसान का भला हो तो साथ कौन नहीं देगा?
जब नयी NDA सरकार बनी, तब राज्यों की तरफ से बहुत बड़ी आवाज़ उठी। इस कानून को बदलना चाहिए, कानून में कुछ कमियां हैं। एक साल हो गया, कोई राज्य कानून लागू करने को तैयार नहीं। महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस की सरकारों ने लागू किया था। किसान हितैषी का दावा करने वालों ने अध्यादेश में जो मुआवजा देना तय किया था उसे आधा कर दिया। अब ये है किसानों के साथ न्याय? किसान भाइयों-बहनों 2014 में कानून बना है लेकिन राज्यों ने उसका विरोध किया। अब केंद्र सरकार राज्यों की बात सुने या ना सुने? इतना बड़ा देश, राज्यों पर अविश्वास करके चल सकता है क्या? ये पहली सरकार है जो राज्यों के सशक्तिकरण मे लगी है। किसान की भलाई के लिए जो कदम केंद्र सरकार उठा रही है उसके बावजूद भी अगर किसी राज्य को ये नहीं मानना है तो वे स्वतंत्र हैं। यदि कुछ कमियां रह जाती हैं, तो उसको ठीक करना चाहिए। किसानों का भला हो, गाँव का भी भला हो और इसीलिए कानून में अगर कोई कमियां हैं, तो दूर करनी चाहिए।
अध्यादेश क्यों ?
इस कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश का रास्ता चुनने के सरकार के निर्णय की पूर्व मंत्री व कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने जबरदस्त आलोचना की। उन्होंने इस कदम को ‘चिंताजनक’ बताया। किसानों के हित में सरकार का अध्यादेश लाना जरूरी था। यदि सरकार अध्यादेश नही लाती तो किसानों को उनकी जमीन का बाजार भाव से चार गुना मुआवजा नही दे सकती थी। इस प्रावधान के जरिए वर्तमान अध्यादेश यह व्यवस्था करता है कि यदि किसानों की जमीन किसी भी छूट वाले कानूनों के तहत अधिग्रहित की जाती है तो उन्हें अधिक मुआवजा मिलेगा। इन्हीं कारणों से साल के आखिरी दिन अध्यादेश जारी करना भी जरूरी हो गया था अन्यथा सरकार अपनी जिम्मेदारी पूरी करने से चूक जाती। इस अध्यादेश की बदौलत ही सरकार किसानों को उनकी जमीन का चार गुना मुआवजा दे पाई है। केवल राजमार्ग मंत्रालय और उर्जा मंत्रालय ने पिच्छले छह महीने मे किसानों को 2000 करोड का मुआवजा दिया। यह इसलिए हो सका क्योंकि सरकार अध्यादेश लेकर आई।
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी आज किसानों के साथ हुई ‘मन की बात’ में भूमि अधिग्रहण क़ानून पर फैलाए जा रहे भ्रम पर खुल कर विस्तार से बात की है।
यहाँ सुनिए :
हमारी मीडिया भी इस भ्रम-जाल को फैलाने मे काफ़ी मददगार रही है। कैसे झूठ फैलाए जाते हैं उसका एक छोटा उदाहरण : एनडीटीवी भूमि अधिग्रहण क़ानून
विपक्षी दल उनसे बातचीत के बगैर कानून में बदलाव का आरोप लगा रहे हैं। यह भी ठीक नही है। तत्कालीन सरकार ने विज्ञान भवन में सभी राज्यसरकारों के मंत्रियों की बैठक बुलाई थी। जिस बैठक में करीब सभी राज्य सरकारों के प्रतिनिधि मंत्री शामिल हुए। इस विषय में उन राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों के पत्र भी हैं। सरकार ने जो बदलाव किए उन्ही राज्यों के सरकारों के सुझाव पर किए। यह कानून में संशोधन भारत की खासकर ग्रामीण भारत की विकास संबंधी जरूरतों को संतुलित करता है और ऐसा करते हुए भी यह भूमि स्वामियों के लिए अधिक मुआवजे की व्यवस्था सुनिश्चित करता है।यह कानून खेतों, खलिहानों में काम करने वालो और किसानों को समृद्धि बनाने वाला कानून है, गावों में विकास के लिए इस विधेयक का साथ दें।
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