5 अगस्त, 2020 को अयोध्या में राम मंदिर-भूमिपूजन सिर्फ़ हिंदू धर्मावलंबियों के लिए एक भावनात्मक उत्सव का क्षण ही नहीं है, इस दिन भारत के इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जुड़ने जा रहा है। राम मंदिर एक ऐसे स्थान पर पुनर्जीवित होने जा रहा है, जिसे हिंदू मानते हैं कि यह उनके सबसे पूजनीय भगवान का जन्मस्थान है।
अयोध्या में एक राम मंदिर का होना निर्विवाद भी था, अजेय भी। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ९ नवंबर २०१९ का ऐतिहासिक निर्णय, जिसे 492 साल के क़ानूनी-ऐतिहासिक-सभ्यतागत विवाद को एक सर्वसम्मत फैसले के साथ साक्ष्य द्वारा तय किया गया, वास्तव में बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय थी। इस निर्णय को जो बात और अधिक विशेष बनाता है, वह है हिंदू धर्मावलंबियों का अभूतपूर्व धैर्य और अपने आराध्य श्री राम के साथ-साथ भारतीय न्यायपालिका पर भी अटूट विश्वास। भारत ने दुनिया को दिखाया, एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का सही अर्थ क्या है। बहुसंख्यक आबादी की यह सामाजिक परिपक्वता भी हमें हमेशा परिभाषित करेगी।
लेकिन आज फिर सर्वोच्च न्यायालय में लड़ाई हारने और उस हार से आहत लोग प्रधानमंत्री की अयोध्या-यात्रा पर सवाल उठाकर राम मंदिर के निर्माण के उत्सव को किरकिरा करने की हर कोशिश में लगे हैं। अलग-अलग राजनीतिक खेमों से अलग-अलग स्वर में कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी इस एकीकरण और आत्मसात की प्रक्रिया को विचलित करने के लिए उतारू हैं। ये बिल्कुल ही अपेक्षित था, क्यूंकी आप भारतीय वामपंथी-सेकुलरों एवं कुछ राजनीतिक दलों से समझदारी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? यदि बुद्धिमता का प्रयोग पहले नहीं हुआ, तो अब कैसे होगा?
आज उनकी समस्या है कि कोरोना महामारी के दौरान यह उत्सव क्यों। वे यह सुनकर की दूरदर्शन इस कार्यक्रम का प्रसारण करेगा, फिर से उसी “सांप्रदायिकता” का रोना रो रहे हैं, जबकि उनका असली बौखलाहट इस उत्सव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी है।
जब मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते अक्षरधाम मंदिर का उद्घाटन किया, तो वह धर्मनिरपेक्ष था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्तारपुर-कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए गये, तो वह धर्मनिरपेक्ष था। जब राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते 1989 में अयोध्या से अपना चुनाव अभियान शुरू किया, तो वह भी धर्मनिरपेक्ष था… लेकिन प्रधान मंत्री अगर राम-मंदिर के भूमिपूजन पर चले जाएँ, तो ये “सांप्रदायिक” है।
यदि अयोध्या में राम मंदिर के पुनःनिर्माण का उत्सव सांप्रदायिक है, तो आपकी धर्मनिरपेक्षता के पाठ पे लानत है।
आलोचकों का कहना है कि यह राज्य के धर्मनिरपेक्ष दायित्व का मामला है। यहां प्रधान मंत्री की क्या भूमिका है? वह पूरी तरह से राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा कर रहे हैं है।
यह बहुत अनुचित है। राज्य के किसी भी प्रमुख को कभी भी अपनी पहचान को खत्म करने की उम्मीद नहीं की गई है। श्री मोदी के लिए हमेशा से अलग मापदंड रहे हैं। तकनीकी रूप से, राज्य द्वारा समारोह का आयोजन नहीं किया जा रहा है, और राज्य का धर्मनिरपेक्ष दायित्व किसी भी व्यक्ति को किसी भी धार्मिक समारोह में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं करता है। इसलिए उनकी उपस्थिति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
हालांकि, हम अगर इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से भी देखें, तो राजनीतिक परिदृश्य के अलावा और क्या बदल गया है? यदि इस सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को किसी निर्णय के लिए बाध्य नहीं किया तो न्यायिक प्रक्रिया में बाधा बढ़ा भी नहीं डाली। यदि इस परिवेश परिवर्तन ने नयायालय को इस मामले के न्यायिक निपटारे के लिए सहज किया है, तो इसका राजनीतिक श्रेय उन्हें क्यूँ नहीं मिलना चाहिए?
दूरदर्शन नियमित रूप से अन्य सभी धर्मों के धार्मिक समारोहों को प्रसारित करता है, तो यह धर्मनिरपेक्ष है। लेकिन अगर वही दूरदर्शन हिंदुओं के एक महत्वपूर्ण घटना को प्रसारित करता है, तो यह सांप्रदायिक है। कोरोना महामारी के कारण कई लोग शारीरिक रूप से समारोह में शामिल नहीं हो पाएंगे, लेकिन पूरी दुनिया को इसके सीधे प्रसारण को देखने का मौका लगेगा।
राम जन्मभूमि मामले में, कानूनी विवाद का समाधान धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़े धोखेबाजों की कट्टरता और असहिष्णुता का अंत था। रामजन्मभूमि पर एक राजसी राम मंदिर दुनिया को आनेवाले सदियों तक यह साबित करता रहेगा की कैसे संप्रदायिक असहिष्णुता पर राजनीतिक रोटिया सेंकने वाले कितने लोगों ने सांप्रदायिक लड़ाई को भड़काने की कोशिश की लेकिन यह भव्य मंदिर, न्यायिक सुलह के बाद ही निर्मित हुआ।
इसलिए यह भारत के संवैधानिक लोकतंत्र और स्वतंत्र न्यायशास्त्र के उत्सव मनाने का भी क्षण है। अयोध्या में राम मंदिर एक राष्ट्रीय गौरव ही नहीं हमारे देश की सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता का सबसे प्रतिष्ठित प्रतीक बनने जा रहा है, और उसके पुनःनिर्माण के लिए भूमिपूजन का अवसर एक राष्ट्रीय समारोह। प्रधानमंत्री को अपने व्यक्तिगत रूप मे नहीं, बल्कि, इस शुभ अवसर का उत्सव मनाने के लिए हमारे सामूहिक प्रतिनिधि के रूप में वहां जाना चाहिए।
इस ऐतिहासिक अवसर पर राजनीतिक और आध्यात्मिक नेतृत्व की संयुक्त उपस्थिति, राष्ट्र के नाम एक अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश है। “राम-राज्य” का संकल्प, जिसका वास्तविक मूल ही स्वतंत्रता, समानता और समरसता है, श्री राम उसी उद्देश्य की प्राप्ति के प्रेरणास्रोत और आदर्श माने जाते रहे हैं।
श्री राम सिर्फ़ हमारी धार्मिक पहचान नहीं हैं, बल्कि हमारी इस महान सभ्यता की विरासत भी हैं। अगर आप अपनी संस्कृति का सम्मान नहीं करते, तो दुनिया आपका सम्मान नहीं करेगी। आप अपनी पहचान का कभी त्याग नहीं कर सकते। कोई भी देश, जिसे अपनी पहचान और अपने अतीत पर गर्व नहीं है, उसका विनाश निश्चित है। पाकिस्तान एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसका कोई जड़ नहीं, कोई संस्कृति नहीं। एक समाज जो अपने अतीत और संस्कृति के साथ निहित है, वह स्थिर भी है और मजबूत भी।
इसलिए यह न केवल धार्मिक हिंदुओं के लिए बल्कि सभी भारतीयों के लिए एक महत्वपूर्ण एवं शुभ अवसर है। प्रभु श्री राम राष्ट्र की सामूहिक चेतना के प्रतीक रहे हैं। राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के पुनःनिर्माण के लिए संघर्ष, संपूर्ण रूप से धार्मिक नहीं था, बल्कि, राष्ट्रीय गौरव को पुनर्स्थापित करना था। यह किसी के खिलाफ नहीं था, बल्कि विदेशी आक्रामकता से क्षतिग्रस्त ‘स्व’ को पुनः प्राप्त करने के लिए था।
यह एक महत्वपूर्ण क्षण इसलिए भी है क्योंकि 70 वर्षों से हमें ऐतिहासिक अन्याय के बारे में भूलना सिखाया गया है। हज़ारों सालों से विदेशी आक्रांताओं द्वारा लाखों लोगों की हत्या और धर्मांतरण किया गया, सोमनाथ से लेकर काशी-विश्वनाथ और मथुरा तक हजारों मंदिरों का विनाश कर अपमानित किया गया, लेकिन तब धर्मनिरपेक्षता पर आँच नहीं आई। जिन लोगों ने जानबूझकर इन अन्यायों को हवा देने का काम किया और इन अपमानों का जश्न मनाने, और हमें आत्म-घृणा करना सिखाया, वही लोग आज इस एकीकरण और आत्मसात के उत्सव पर रुदाली कर रहे हैं. यह इनकी रुदाली पे जश्न मानने का भी शुभ अवसर है।
यह एक वो अप्रतिम शुभ अवसर है जब एक पीड़ित और सुसुप्त भारत की खाल से एक आश्वस्त और न्यायपूर्ण भारत उभर खड़ा हो रहा है।