फगुआ मतलब फागुन, होली। बिहारका फगुआ जम कर मौज मस्ती करने का पर्व है। जब मैं बिहारी होली की बात करता हूँ तो उसका मतलब बिहार की चौहद्दी से नहीं है । बनारस से उत्तर की तरफ गोरखपुर होते हुये अगर नेपाल की सीमा तक जायें और वहाँ से पूरब मुड़कर सीतामढ़ी, और फिर दक्षिण की तरफ मुजफ़्फरपुर, वैशाली, फिर गंडकी का किनारा पकड़े पश्चिम में छपरा होते हुये, सोन नदी के साथ साथ डिहरी-आन-सोन और फिर पश्चिम मुड़कर भभुआ के पहाड़ और कर्मनाशा पारकर बनारस के दक्षिण तक जो क्षेत्र बनता है; वह क्षेत्र मोटे तौर पर भोजपुरी-भाषी क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र की होली का रंग अनूठा है।
यहाँ भी होली के एक दिन पहले होलिका जलाई जाती है, .. लोग उसे सम्भत कहते हैं। परंपरा के हिसाब से गाँव के नवयुवक रात रात जाग कर दूसरे घरों, छत, चौपाल, दालान से जो बन पड़ा इकट्ठा कर लाते हैं।परंपरा के हिसाब से रात मे कढ़ी-बड़ी ज़रूर बनाया जाता है जिसे खाने से पहले सम्भत मे भी डाला जाता है।
होली के दिन की परम्परा यह है कि सुबह सुबह धूल-कीचड़ से होली खेलकर, दोपहर में पानी वाला रंग खेला जाता है। यहाँ होली मे देवर-भौजाई का एक अलग रोमांच होता है। लोग घर मे आपस मे मार-मज़ाक कर होली खेलते हैं लेकिन ससुराल मे होली खेलने का विशेष महत्व है जीजा -साली की होली का अलग रोमांच। ज़्यादातर लोग कोशिश करते हैं की ज़्यादा से ज़्यादा लोग एक घर परिवार के इकट्ठे होकर साथ मे होली मनाएँ और हर एक रिश्ते का साथ मे आनंद उठाए।
होली की बात है तो एक घटना याद करता हूँ जो हमारी होली को ठीक से दर्शाता है :
हम गाँव के प्रतिष्ठित डॉक्टर मोती बाबू के घर पहुँचते हैं, और मोटी बाबू मन-मन गाली देते हुए धीरे-धीरे मन मजबूत करके होली के लिए तैयार हो रहे हैं. मुझे मोती बाबू की मिलनसारिता, आम लोगों की उन तक पहुँच, समस्याओं के बारे में उनके कुछ मूल विचार अच्छे लगते थे. तभी सामने कोई एक दर्जन लोग बाल्टी में रंग लिये आते हैं, कुछ रंगों से भींगे कपड़ों में हैं, कुछ की नंगी पीठ पर ही रंग बिखरे पड़े हैं। मोती बाबू चालू: उन्हें आज ही पटना जाना है, अत: वे पूरी तरह तैयार होकर जाने के लिये निकले हैं, कृपया उन्हें रंग न लगाया जाय। लेकिन उनकी यह दलील, उनकी मिन्नत कोई सुनने वाला नहीं है। एक आदमी, आधी फटी बनियान पहने, रंगों से ढंके, चेहरे पर लाल अबीर लगाये, सामने आते हैं, कहते हैं: “मोती बाबू पटना चऽल जायेब, अबहीं त बेरा बा! बाल्टियाँ उझल दी जातीं हैं; आज कोई डॉक्टर नहीं, कोई मजदूर नहीं। फगुआ के रंग से सबों को नहाना है, “संउसे गाँव” को !
गत कुछ वर्षों में एक अलग विवाद चल रहा है होली के समय. “तोहरा किहा फगुआ कहिया बा?” तपाक उत्तर है — “जहिया मन करे, हमनी त दूनू दिन मनाईब”। याने जिस दिन आपका दिल चाहे। हम लोग तो दोनो दिन मनायेंगें। मेरे दिल की पूछें तो ये सब नाटक मंगल व्रिहस्पत के दिन माँस मच्चली नहीं खाने वालों का है. और होली बहुतेरों के घर उसके बिना अधूरा है।
होली का ख़ास पकवान माल-पुआ और गुज़िया है. छोले (जिन लोगों के यहाँ माँसाहारी खाना बनता है वहाँ मटन), दही-बड़ा भी मूल रूप से होली के दिन ज़रूर बनता है. होली के दिन इस क्षेत्र मे भांग खाने और भांग का शरबत पीने की भी परंपरा है. भांग और काजू की बरफी हर हलवाई के यहाँ मिलेगी.
फिर शाम को अबीर लगाकर हर दरवाजे पर घूमके फगुआ गाया जाय। पर फगुआ और भांग की मस्ती में यह क्रम पूरी तरह बिसरा दिया जाता है। फगुआ का विशेष पकवान पिड़की (गुझिया) हर घर में बनता है और मेलमिलाप का समा बना रहता है। बिहार में वसंत पंचमी के बाद ही होली के गीत गाए जाने लगते हैं और ये सिलसिला होली तक बरकरार रहता है। अंग प्रदेश में इसे फगुआ कहते हैं, और फगुआ के साथ जोगीरा .. कुच्छ पंक्तियाँ जो याद हैं वो पेश करता हूँ:
सा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा जोगीरा सा रा रा रा
फ़ागुन महिनवा जी सबसे रंगीन हां सबसे रंगीन..
आ याद करे बुढवा जवानी के दिन .. बोलो सा रा रा रा
सा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा जोगीरा सा रा रा रा
मार लेले सैंया जब होली मे वाइन हो होली मे वाइन..
त पीयाला का सूर मे कहेले साढ़ुआईन .. बोलो सा रा रा रा
सा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा जोगीरा सा रा रा रा
सैंया के अपना तरीका बताईं .. तरीका बताईं..
आ दारू पी के होली मे चलेले ढिम्लाईल … बोलो सा रा रा रा
सा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा रा जोगीरा सा रा रा रा
वैसे मुझे जब से होश है तब से कोई ऐसी होली नहीं है जो इस गाने के बिना पूरा हो जाए … ना आप सबों मे से किसी की पूरी होती होगी:
हमारे यहाँ की होली मे किसी भी बात का परहेज़ नहीं किया जाता.. होली खुले दिल और खुले दिमाग़ से मनाई जाती है ….
bahut Badhiya. Holi ka jeevant vivaran diya hai aapne. Fagua man gaya.
LikeLiked by 1 person
बढ़िया प्रयास …:))
शुभआशीर्वाद ….!!!!
http://daalaan.blogspot.in/2012/03/blog-post_05.html
LikeLike
Dhanyawaad sarkaar !!
LikeLike